दुनिया में मां की कोख को सबसे सुरक्षित माना जाता है। यह बच्चे को इस दुनिया में आने से पहले हर झटके, हर नुकसान से बचाती है। लेकिन चारों तरफ फैले धुएं से अब मां की कोख भी सुरक्षित नहीं है। दीपावली के समय बढ़े हुए प्रदूषण ने समस्या को और बढ़ा दिया है, लेकिन कुछ उपायों से हम न केवल प्रदूषण से बच सकते हैं, बल्कि इसे फैलने से भी रोक सकते हैं।
डॉक्टरों के मुताबिक बड़ों की तुलना में बच्चों पर प्रदूषण का ज्यादा बुरा असर होता है। उजाला सिग्नस ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स के डाइरेक्टर डॉ. शुचिन बजाज कहते हैं, “बच्चों के शरीर में सांस संबंधी अंगों का विकास हो रहा होता है, इसलिए ये ज्यादा रिस्क में होते हैं। प्रेगनेंट मदर के गर्भ में पल रहे शिशुओं के फेफड़ों पर भी प्रदूषण का बुरा असर होता है। प्री-मैच्योर डिलीवरी की आशंका भी होती है। जन्म के बाद बच्चे का वजन कम हो सकता है।
हवा में काफी मात्रा में घुले प्रदूषण का जहर अस्थमा के शिकार बच्चों के लिए बेहद नुकसानदेह है। अस्थमा के मरीजों में अटैक के चांसेज बढ़ जाते हैं। अधिक प्रदूषण में रहने का बुरा असर भविष्य में कई बीमारियों के रूप में सामने आता है। उम्र बढ़ने के साथ न्यूमोनिया, अस्थमा, लंग कैंसर और सांस संबंधी दूसरी परेशानियां हो सकती हैं।”
बुजुर्गों के लिए मुश्किल होता है ये समय
एजवेल फाउंडेशन की 2019-2020 की रिपोर्ट में पाया गया कि ठंड के दिनों में पॉल्यूशन लेवल का बढ़ना बुजुर्गों की चिंता का बड़ा कारण है। डॉ. बजाज बताते हैं कि संभव हो, तो इनके कमरे में एअर प्यूरीफायर लगाएं। इनको पैसिव स्मोकिंग से भी दूर रखना जरूरी है। इन्हें एन 95 और एन 99 मास्क का इस्तेमाल करना चाहिए। इनके कमरे में वेंटिलेशन की सही व्यवस्था होने से सेहत पर अच्छा असर पड़ेगा।
तकनीक की मदद से सेहत को रखें सुरक्षित
हवा की शुद्धता नापने वाले और हवा को शुद्ध करने वाले कई तरह के उपकरण आज उपलब्ध हैं। बढ़े हुए प्रदूषण से राहत दिलाने में इनके योगदान को नकारा नहीं जा सकता है। एअर प्यूरीफायर और एअर क्वालिटी मॉनिटर पॉल्यूशन से बचाने में मददगार गैजेट्स के रूप में उभरे हैं। पॉल्यूशन को लेकर लोगों को जागरूक कर रही 'एअरवेदा' की फाउंडर नमिता गुप्ता के अनुसार, “साल के जिन महीनों में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है, लोग इससे होने वाले नुकसान पर बातें करने लगते हैं। जबकि यह जागरुकता साल भर होनी चाहिए।"
नमिता कहती हैं कि एअर क्वालिटी को अप्रूव करने का प्रयास घर से शुरू करना होगा। बच्चों को बताना चाहिए कि किस तरह से एअर पॉल्यूशन कम करने में उनका योगदान भी जरूरी है। पिछले कुछ सालों में आयी जागरुकता के कारण ही कई घरों में बच्चे पटाखे नहीं जलाना चाहते हैं। इसका श्रेय टीचर्स और फैमिली को जाता है।
दिवाली में खास सावधानी
- बाजार में भीड़ होने के कारण पॉल्यूशन अधिक है इसलिए खरीदारी के लिए बच्चों को साथ लेकर न जाएं।
- अस्थमा से जूझ रहे बच्चों को बगैर मास्क के टैरेस पर मत भेजें।
- कार से रिश्तेदारों को उपहार देने जा रहे हैं, तो भी बच्चों को साथ न ले जाएं। बढ़े हुए प्रदूषण में कार के अंदर की हवा बाहर की हवा से अधिक प्रदूषित पाई गई है।
- प्रेगनेंट वर्किंग महिलाएं संभव हो, तो वर्क फ्रॉम होम करें। त्योहार के बाद भी पॉल्यूशन लेवल बढ़ा होता है। हवा अच्छा होगा अगर हवा की क्वालिटी बेहतर होने पर ही बाहर निकला जाए।
- शहर में जिन इलाकों में पॉल्यूशन का लेवल ज्यादा है, वहां जाने बचें।
- घर के अंदर पॉल्यूटेंट को अवशोषित करने वाले पौधे लगाएं।स्मोकिंग किए जाने वाले दुकानों के पास खड़े न हों।
आप भी कम कर सकते हैं, एयर पॉल्यूशन
- छोटी दूरी तक जाने के लिए टू व्हीलर की जगह साइकिल को इस्तेमाल में लाए।
- जब कभी संभव हो, पैदल चल कर दूरी तय करें।
- घर, बालकनी और टैरेस पर कुछ पौधे लगा कर पॉल्यूशन के लेवल को कम करने में मदद करें।
पौधे लगाकर प्रदूषण का मुकाबला करें
घर या मोहल्ले के आसपास फैक्टरी या पॉल्यूशन को बढ़ावा देने वाले स्रोत हैं, तो वहां पौधे लगाएं। यूएस की ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी में हुए शोध में पाया गया कि ऐसा करके उस एरिया के पॉल्यूशन लेवल को 27% तक कम किया जा सकता है। स्टडी में स्वीकारा गया कि इंडस्ट्रियल साइट्स, पावर प्लांट्स, कॉमर्शियल बॉयलर्स और ऑयल-गैस ड्रिलिंग साइट्स पर पाैधे लगा कर प्रदूषण कम करना मशीनों की तुलना में एक सस्ता विकल्प है।5 साल में भारत के 42 शहरों पर होगा काम
साल 2020 में 15वें वित्त आयोग के सुझावों के आधार पर भारत सरकार ने अगले 5 साल में देश के 42 शहरों में एअर पॉल्यूशन से निबटने के लिए 1.7 बिलियन डॉलर (170 करोड़ रु ) का प्रावधान किया है। भारत के संसद की ओर से अगस्त 2021 में राष्ट्रीय राजधानी और आसपास के क्षेत्रों में एअर क्वालिटी मैनेजमेंट पर बने कानून को स्वीकृति दे दी है।
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