साल 2006 में रिलीज हुई फिल्म ‘रंग दे बसंती’ से आमिर खान और अपनी दोस्ती की शुरुआत मानने वाले अतुल कुलकर्णी कहते हैं कि मित्रता की परिभाषाएं किसी पेशे के हिसाब से तय नहीं की जा सकतीं। फिल्म इंडस्ट्री में भी वैसी ही मित्रताएं और अनबनें होती हैं जैसी कि किसी दूसरे पेशे में होती हैं। ये इंसानी रिश्ते हैं और किसी भी दूसरे पेशों की तह ही फिल्म इंडस्ट्री में भी होते हैं।
जो भी है बस यही इक पल है
इसी हफ्ते रिलीज होने जा रही बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ की पटकथा लिखने वाले मशहूर अभिनेता अतुल कुलकर्णी को करियर के शुरुआती दौर में ही पहले फिल्म ‘हे राम’ और फिर फिल्म ‘चांदनी बार’ में अभिनय के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। ये वो दौर था जब सोशल मीडिया का इतना हो हल्ला नहीं था। इस बारे में अतुल कहते हैं, ‘नहीं, इन सब बातों के बारे में ज्यादा सोचता नहीं हूं। मैं अतीत में जीने में यकीन नहीं रखता। मैं इस समय के क्षण में जीता हूं। मुझे अभी जो मेरे आस पास हो रहा है उसे जीने में आनंद आता है।
16 साल की दोस्ती और ‘लाल सिंह चड्ढा’
अतुल कुलकर्णी और आमिर खान एक साथ फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ को पिछले 16 साल से सीने से लगाए रहे हैं। पहले पहल जब अतुल ने आमिर को हॉलीवुड फिल्म ‘फॉरेस्ट गंप’ को हिंदी में बनाने का आइडिया दिया तो वह बहुत उत्साहित नहीं हुए थे। आमिर कहते भी हैं कि फिल्म का पहला ड्राफ्ट पढ़ने में ही मुझे बहुत समय लग गया। मुझे लगता था कि अतुल तो कलाकार हैं, उनका लेखन से क्या लेना देना। लेकिन जब मैंने इसे पढ़ा तो मुझे ये पटकथा बहुत पसंद आई। अब फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ 11 अगस्त को रिलीज होने जा रही है
पशे को निजी जीवन से दूर रखना जरूरी
आमिर खान भले किसी फिल्म की मेकिंग के दौरान उसमें पूरी तरह डूब जाते हों। पेशे को लेकर अतुल कुलकर्णी का नजरिया साफ है। वह कहते हैं ‘मैं पहले भी ये बात कह चुका हूं कि मैंने अभिनय में कदम रखने के समय ही इस बारे में फैसला ले लिया था। अब भी मेरा यही मानना है कि पेशा और जीवन दो अलग अलग चीजें हैं और हमें दोनों को एक दूसरे से अलग रखते हुए जीना चाहिए। मैं हर रोज शूटिंग ही करूं, ऐसी ख्वाहिश मेरी कभी नहीं रही। बल्कि मेरा ये सोचा समझा फैसला रहा है कि मैं रोज शूटिंग नहीं करूंगा।’
दर्शकों की पसंद के हिसाब से चुनाव
किसी किरदार के चयन के मापदंड के बारे में पूछे जाने पर अतुल कहते हैं, “मेरा नजरिया एक किरदार की बजाय पूरी कहानी पर रहता है। मैं ये समझने की कोशिश करता हूं कि जो कहानी निर्माता या निर्देशक मुझे सुना रहा है, वह दर्शकों को पसंद आएगी या नहीं। मैं कहानी को दर्शक के नजरिए से सुनता हूं और फिर उसी अनुसार फैसला लेता हूं।”
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