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Mainpuri Lok Sabha Seat: मैनपुरी में मुलायम की विरासत बचाने उतरीं बहू डिंपल, भाई शिवपाल का रुख तय करेगा हार-जीत का समीकरण

Dimple Yadav in Mainpuri Election: क्या मैनपुरी लोकसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में डिंपल यादव अपने परिवार की विरासत बचा पाएंगी? राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि इस सवाल का जवाब शिवपाल सिंह यादव के रुख पर निर्भर करता है.

सपा सुप्रीमो रहे मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद यूपी की मैनपुरी लोकसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में पारिवारिक विरासत बचाने के लिए अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने अपनी पत्नी डिंपल यादव (Dimple Yadav) को मैदान में उतारा है. उन्होंने डिंपल यादव को चुनावी मैदान में उतार कर धर्मेंद्र यादव और तेज प्रताप यादव की होड़ को खत्म करने की कोशिश की है. हालांकि यहां पर चुनावी समीकरण डिंपल के फेवर में बैठ पाएगा या नहीं, यह मुलायम सिंह यादव के भाई शिवपाल यादव (Shivpal Singh Yadav) के रुख पर काफी हद तक निर्भर करेगा.

सपा का मैनपुरी सीट पर 26 साल से कब्जा
राजीतिक पंडितों की मानें तो सपा मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) का परिवार 26 साल से इस सीट पर काबिज रहा है. उन्हें लगता है कि उनके इस फैसले से मुलायम की मौत से लोगों में उपजी सहानुभूति के अलावा महिलाओं का भी भरपूर समर्थन मिलेगा. सपा के एक स्थानीय नेता ने बताया कि सपा के बाद दूसरा कोई भी दल इस गढ़ को फतेह नहीं कर सका. 

शिवपाल यादव की पकड़ भी काफी मजबूत
उन्होंने कहा कि इटावा, मैनपुरी, कन्नौज, फिरोजाबाद और फरुर्खाबाद जैसे जिले सपा के गढ़ माने जाते हैं. यादवों की बड़ी आबादी के समर्थन से अधिकतर सीटों पर साइकिल का कब्जा होता रहा है. यादव बेल्ट पर शिवपाल यादव की भी पकड़ बेहद मजबूत है. उन्होंने दशकों तक इन इलाकों में गांव-गांव घूमकर काम किया है. शिवपाल यादव (Shivpal Singh Yadav) का यहां के बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं के साथ व्यक्तिगत संबंध बताया जाता है. इसी कारण मैनपुरी सीट पर शिवपाल का काफी असर रहेगा. इसलिए अखिलेश को उन्हें साधना ही पड़ेगा. 

मुलायम के सामने नहीं उतारा था उम्मीदवार
वर्ष 2018 में पारिवारिक मतभेदों के चलते जब मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई शिवपाल यादव (Shivpal Singh Yadav) ने प्रसपा का गठन कर सियासत की नई राह चुन ली. इसके बाद भी शिवपाल सिंह ने वर्ष 2019 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव के सामने प्रसपा का प्रत्याशी उतारने से साफ मना कर दिया था. ऐसा करके उन्होंने जता दिया था कि उनके लिए बड़े भाई का सम्मान पहले है और पार्टी बाद में.

क्या शिवपाल को साध पाएंगे अखिलेश यादव?
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक पीएन द्विवेदी कहते हैं कि मुलायम का परिवार करीब ढाई दशक से मैनपुरी सीट (Mainpuri Lok Sabha Seat) पर काबिज है. शिवपाल यहां से अगर बागी होते हैं तो चुनावी समीकरण जरूर बिगाड़ सकते हैं क्योंकि उनका इस सीट पर ठीक ठाक प्रभाव है. ऐसे में अखिलेश को उन्हें साधना पड़ेगा क्योंकि मुलायम सिंह यादव के चले जाने के बाद अब शिवपाल यादव (Shivpal Singh Yadav) के लिए यादव बेल्ट में खुद के लिए बड़ी भूमिका तलाशना चुनौती भी है. हालंकि अभी मुलायम के प्रति सहानुभूति का लाभ अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) को ही मिलने के आसार ज्यादा हैं. फिर भी शिवपाल की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है.

सबसे ज्यादा 3.5 लाख यादव मतदाता
चुनावी आंकड़ों की मानें तो मैनपुरी (Mainpuri Lok Sabha Seat) में सबसे ज्यादा करीब 3.5 लाख यादव मतदाता है. इसके बाद डेढ़-डेढ़ लाख ठाकुर, ब्राम्हण, जाटव और शाक्य मतदाता हैं. वहीं मुस्लिम, कुर्मी, लोधी वोटर तकरीबन एक- एक लाख है. अखिलेश यादव का समीकरण है कि यादव- मुस्लिम समीकरण की वजह से डिंपल पहले से ही लीड की स्थिति में है. ऐसे में थोड़ी सी मेहनत और कर ली जाए तो आसानी से सीट निकल सकती है.
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