Header Google Ads

क्या बदल गई सरकार की प्राथमिकता: सात महीने से चेयरमैन के बिना निष्क्रिय पड़ा गौसंवर्धन के लिए बना कामधेनु आयोग


 क्या राष्ट्रीय कामधेनु आयोग अब केंद्र सरकार की प्राथमिकता में नहीं रह गया है? यदि केंद्र सरकार के नजरिये को देखें तो फिलहाल यही संकेत मिलता है कि संघ परिवार की वैचारिक निष्ठा से जुड़ा यह आयोग अब सरकार की प्राथमिकता में शामिल नहीं रह गया है। इसका सबसे पहला संकेत तब मिला जब इसी साल 25 फरवरी को आयोजित होने वाली आयोग की ‘कामधेनु गौविज्ञान प्रचार प्रसार परीक्षा’ को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया, जबकि इसे गौसंवर्धन के उद्देश्य से महत्वपूर्ण बताया गया था। इसके बाद पिछले सात महीने से आयोग के चेयरमैन पद पर किसी की नियुक्ति भी नहीं की गई है। इससे आयोग निष्क्रिय हो चुका है और उसकी सारी योजनाएं अब फाइलों में धूल फांक रही हैं।  

प्रधानमंत्री मोदी ने की थी स्थापना

राष्ट्रीय कामधेनु आयोग की स्थापना खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 06 फरवरी 2019 को की थी। इस आयोग के गठन के समय केंद्र सरकार और भाजपा ने यह दावा किया था कि इससे भारत की देसी गायों की नस्ल में सुधार का विशेष प्रयास किया जाएगा। आयोग के जरिये पंचगव्यों (गाय का दूध, दही, घी, गोबर और गौमूत्र) के वैज्ञानिक अध्ययन कर इससे आयुर्वेदिक दवाओं का निर्माण किया जाएगा।

दावा यहां तक किया गया था कि इससे ग्रामीण इलाकों के युवाओं को 50 हजार रुपये मासिक तक का रोजगार मिलेगा। इसे सीमांत किसानों की आय बढ़ाने के एक महत्वपूर्ण उपाय के तौर पर भी देखा गया था। फिलहाल ये सारे दावे हवा-हवाई हो चुके हैं और अब राष्ट्रीय कामधेनु आयोग निष्क्रिय पड़ा हुआ है। आयोग की स्थापना के समय मार्च 2019 में डॉ. वल्लभभाई कथिरिया को इसका पहला अध्यक्ष बनाया गया था। उनका दो वर्ष का कार्यकाल फरवरी 2021 में पूरा हो चुका है। इसके बाद से ही आयोग के अध्यक्ष पद पर किसी की नियुक्ति नहीं हुई है।     

कहां गया गोबर से मोबाइल चिप बनाने का दावा  

राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के पहले अध्यक्ष डॉ. वल्लभ भाई कथिरिया गौसंवर्धन के लिए अपने वैज्ञानिक दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं। उनकी अध्यक्षता में आयोग ने एक दिन यह दावा कर दुनिया को चौंका दिया था कि अब गाय के गोबर से मोबाइल के चिप बनाये जाएंगे। इनसे मोबाइल से निकलने वाला रेडिएशन न के बराबर रह जाएगा। फिलहाल, अब तक आयोग की तरफ से ऐसा कोई चिप तैयार नहीं किया जा सका है।

राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के लिए वर्ष 2019-20 के अंतरिम बजट में प्रस्ताव किया गया था। इसके गठन के समय गायों की सुरक्षा और गोवंश का विकास करना इसका उद्देश्य बताया गया था। आयोग को गायों की सुरक्षा और संवर्धन को लेकर बनाये गये कानूनों (गौवंश की हत्या को रोकने सहित) को देश में लागू कराने का प्रयास भी करना था।

राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के गठन के बाद से गोमांस को लेकर देश के अलग-अलग राज्यों में विवाद होता रहा है। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने गोवंश संरक्षण को लेकर कड़ा रुख अपनाया और गोवंश की हत्या पर कठोर कार्रवाई की तो भाजपा सहित कई अन्य दलों, विशेषकर पूर्वोत्तर के राज्यों में, इसके प्रति लचीला रुख अपनाया। फिलहाल, अपने दो वर्ष के कार्यकाल में आयोग अब तक कोई प्रभावी उपाय कराने में असफल साबित हुआ है।

Tags

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.