BalaSaheb Thackeray Death Anniversary: बाल ठाकरे के इशारे पर रुक जाती थी महाराष्ट्र की राजनीति, कार्टूनिस्ट से बने किंगमेकर
उनकी छवि एक कट्टर हिंदू नेता के रूप में देखे जाते थे। वहीं वह यूपी-बिहार से आकर मुंबई बसने वाले लोगों के खिलाफ थे। बाला साहब का महाराष्ट्र में दबदबा कुछ ऐसा था कि उनके एक इशारे पर पूरी मुंबई थम जाती थी। तो आइए जानते उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर बाला साहब ठाकरे की जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
महाराष्ट्र की राजनीति में निभाते थे अहम भूमिका
बता दें कि करीब 46 वर्षों तक बाला साहब सार्वजनिक जीवन में रहे। इस दौरान उन्होंने न कभी कोई चुनाव लड़ा और न ही कोई राजनीतिक पद स्वीकार किया। इसके बाद भी वह राज्य की राजनीति में अहम भूमिका निभाते थे। मुंबई को अपना गढ़ बनाकर काम करने वाले ठाकरे अपने विवादित बयानों को लेकर अक्सर चर्चा में बने रहते थे। वह हमेशा अपनी शर्तों पर जिंदगी जीना पसंद करते थे। बाला साहब चांदी के सिंहासन पर बैठते थे और उनके इशारों पर महाराष्ट्र की राजनीति घूमती थी।
इस चीज के खिलाफ थे बाला साहब
यूपी-बिहार से आकर मुंबई में बसने वाले नेताओं और अभिनेताओं के बाला साहब खिलाफ थे। बाला साहब का कहना है कि महाराष्ट्र सिर्फ मराठाओं का है। वहीं राज्य में मारवाड़ियों, गुजरातियों और उत्तर भारतीयों के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ आंदोलन चलाया था। वह महाराष्ट्र में किंग मेकर की भूमिका निभाते थे और सरकार में न रहते हुए भी सभी फैसलों में दखल देते थे।
ऐसे कार्टूनिस्ट से बने किंगमेकर
महाराष्ट्र के पुणे में 23 जनवरी 1926 को जन्मे बाला साहब ने अपने कॅरियर की शुरूआत बतौर पत्रकार और कार्टूनिस्ट की थी। बाला साहब ने 'द फ्री प्रेस जर्नल' से अपने करियर की शुरूआत की थी। फिर उनके कार्टून 'टाइम्स ऑफ इंडिया' में भी छपे। वहीं साल 1960 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी और 'मार्मिक' नाम से अपनी खुद की पॉलिटिकल मैगजीन की शुरूआत की। बाला साहब अपने पिता की विचारधारा से काफी प्रभावित थे।
राजनीतिक पार्टी
साल 1966 में बाला साहब ठाकरे ने शिवसेना नाम से राजनीतिक पार्टी का गठन किया। वहीं अपनी जनधारा को आम जनता तक पहुंचाने के लिए उन्होंने साल 1989 में 'सामना' अखबार लॉन्च किया। वर्तमान समय में बाला साहब ठाकरे की शिवसेना दो भागों में बंट गई है।
मृत्यु
बाला साहब के राजनीतिक कद का अंदाजा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि 17 नवंबर 2012 में उनके निधन की सूचना मिलते ही मुंबई में चारों ओर सन्नाटा पसर गया था। बाला साहब की अंतिम यात्रा में लाखों की संख्या में शामिल थे।