शिवसेना के गढ़ में सेना का संघर्ष, कौन होगा बालासाहेब का असली उत्तराधिकारी; जनता करेगी फैसला
आशुतोष झा, मुंबई। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव यह तो तय करेगा ही कि सत्ता किसके हाथ होगी, लेकिन इसके साथ ही कुछ हद तक यह भी तय करेगा कि बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना का असली उत्तराधिकारी जनता किसे मानती है।
इसके कई मानक होंगे, लेकिन मुंबई की माहिम सीट इसका बड़ा संकेत देगी। दरअसल, यही एक सीट है जहां शिवसेना का किसी दूसरे से नहीं बल्कि अपने ही तीन धड़ों के साथ मुकाबला है।
बात इतनी भर नहीं है, यह वह सीट है जिसे शिवसेना का मूल माना जा सकता है क्योंकि सेना भवन (पुरानी शिवसेना का कार्यालय), शिवाजी पार्क और सेना की विचारधारा से जुड़ी स्मृति एक डेढ़ किलोमीटर के दायरे में मौजूद है। यही वह सीट है, जहां से जीतकर मनोहर जोशी शिवसेना के पहले मुख्यमंत्री बने थे।
राज ठाकरे के पुत्र अमित ठाकरे भी मैदान में
इस सीट से शिंदे शिवसेना के सदा सरवणकर, कभी बालासाहेब के उत्तराधिकारी माने जाते रहे राज ठाकरे के पुत्र अमित ठाकरे मनसे से और उद्धव सेना से महेश सावंत मैदान में हैं। सरवणकर पुराने शिव सैनिक रहे हैं। पार्टी के निचले स्तर से उठकर तीन बार विधायक रह चुके हैं। भाजपा का साथ छोड़कर आघाड़ी में जाने के मुद्दे पर वह भी उद्धव को छोड़कर शिंदे के साथ हो गए थे।
पूछने पर कहते हैं- मैं तो बालासाहेब का सिपाही हूं, उनकी राह पर अभी भी चल रहा हूं। बालासाहेब का विश्वस्त होने का दावा करते हुए वह कहते हैं-एक बार बालासाहेब ने किसी बात पर मणिशंकर अय्यर को मुंबई में न घुसने देने की बात कही थी तो वही थे जिन्होंने उन्हें रोका था। उनके पास जनता को बताने के लिए एक और मुद्दा है- विकास का, शिंदे सरकार की ओर से शुरू की गई योजनाओं का।
मनसे से अमित ठाकरे का नाम तब घोषित किया गया, जब सरवणकर का नाम घोषित हो चुका था। एक कोशिश हुई थी सरवणकर को नाम वापस लेने को कहा जाए और मनसे को महायुति का उम्मीदवार बना दिया जाए। लेकिन, सरवणकर नहीं माने। लेकिन यह सवाल है कि राज ठाकरे ने क्या यूं ही अपने पुत्र को चुनावी मैदान में उतार दिया है।
मनसे के चुनावी वैन लगातार घूम रहे
पहले भी एक बार मनसे का उम्मीदवार इस सीट से जीत चुका है, लेकिन वह पुरानी बात हो गई है। मनसे के चुनावी वैन लगातार घूम रहे हैं। सवाल यह भी है कि शिवसेना में थोड़ी खींचतान मची रहे यह कौन चाहेगा। यह माना जा रहा है कि मनसे उद्धव सेना के मुकाबले शिंदे सेना को ज्यादा नुकसान पहुंचाएगा। इसीलिए, आखिर मौके तक सरवनकर राज ठाकरे को मनाने की कोशिश करते रहे थे। दोनों पड़ोसी भी हैं।
सावंत के पास न तो सरवणकर जैसा अनुभव है और न ही अमित ठाकरे की तरह वह परिवार से आते हैं। उनके लिए सिर्फ यही मुद्दा है कि वह बालासाहेब के पुत्र उद्धव के चुने हुए प्रतिनिधि हैं। लगभग दो लाख वोटरों वाले इस चुनाव क्षेत्र में मराठी जाहिर तौर पर सबसे फायदा हैं। लगभग आधी आबादी उनकी है। मुस्लिम वोटरों की संख्या भी ठीक है।
गुजराती- उत्तर भारतीय वोटर भी प्रभावी
गुजराती वोटर भी प्रभावी हैं। उत्तर भारतीय की संख्या भी एकतरफा किसी तरफ पड़ी तो फर्क आ सकता है। मराठी मानुष जैसे नारे अब कमजोर पड़ गए हैं। विकास के साथ मुफ्त रेवड़ी का असर दिख रहा है। उस नाते सरवणकर का दाव थोड़ा मजबूत दिख रहा है। अगर ऐसा होता है तो नैरेटिव में उद्धव एक और जंग हार जाएंगे। चुनाव आयोग ने धनुष-बाण का मूल चुनाव चिह्न पहले ही शिंदे सेना को दे दिया है। माहिम की हार वैचारिक स्तर पर भी उनकी हार को स्थापित कर देगी।