आर्यन खान (Aryan Khan) को हाई कोर्ट से जमानत दिलाने की जिम्मेदारी पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी (Mukul Rohatgi) ने उठाई है। वह बॉम्बे हाई कोर्ट में आर्यन की पैरवी करेंगे। लेकिन कौन हैं मुकुल रोहतगी, शाहरुख खान ने क्यों किया उन पर भरोसा? आपके सवालों का जवाब (Know All About Mukul Rohatgi) यहां है।
'विदेशियों को भी देश में मिलती है जमानत'
पूर्व अटॉर्नी जनरल ने आगे कहा था, 'जमानत एक मानक है, जेल एक अपवाद है। यह मुद्दा कई साल पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुलझाया गया था, क्योंकि संविधान का सबसे स्थापित सिद्धांत 'जीवन का अधिकार' और 'स्वतंत्रता का अधिकार' है और यह न केवल केवल भारतीयों के लिए, बल्कि भारत में विदेशियों के लिए भी है। अगर वो उसे ( आर्यन खान को) जमानत देना चाहते हैं, तो यह तुरंत किया जा सकता है, यहां तक कि पब्लिक हॉलिडेज़ पर भी।'
पिता थे जज, प्रणब मुखर्जी ने बनाया था अटॉर्नी जनरल
मुकुल रोहतगी को 19 जून 2014 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अटॉर्नी जनरल नियुक्त किया था। वह 18 जून 2017 तक देश के 14वें अटॉर्नी जनरल रहे। मुकुल रोहतगी सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ और दिग्गज वकील हैं। रोहतगी के पिता अवध बिहारी रोहतगी दिल्ली हाई कोर्ट के जज थे।
गुजरात दंगा, बेस्ट बेकरी और जाहिरा शेख केस
मुकुल रोहतगी ने साल 2002 के गुजरात दंगों में राज्य सरकार का सुप्रीम कोर्ट में बचाव किया था। 2002 के दंगों को फर्जी एनकाउंटर के आरोपों को लेकर उन्होंने राज्य सरकार की अदालत में पैरवी की। इसके अलावा वह 'बेस्ट बेकरी' और 'जाहिरा शेख ममाले' के लिए भी सुप्रीम कोर्ट में जिरह कर चुके हैं।
योगेश कुमार सभरवाल का जूनियर बन शुरू किया करियर
मुकुल रोहतगी ने मुंबई के ही गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से कानून की डिग्री ली है। इसके बाद उन्होंने योगेश कुमार सभरवाल के जूनियर के तौर पर अपनी प्रैक्टिस शुरू की। योगेश कुमार सभरवाल देश के 36वें चीफ जस्टिस बने। मुकुल रोहतगी ने जस्टिस योगेश कुमार सभरवाल के साथ हाई कोर्ट में काम करना शुरू किया। साल 1993 में दिल्ली हाई कोर्ट ने उन्हें सीनियर काउंसिल का दर्जा दिया। 1999 में मुकुल रोहतगी एडिशनल सॉलिसिटर जनरल बने। तब केंद्र में अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार थी।
फीस के तौर पर महाराष्ट्र सरकार ने दिए थे 1.21 करोड़ रुपये
मुकुल रोहतगी की फीस को लेकर कोई पुष्ट जानकारी तो नहीं है। लेकिन कई रिपोर्ट्स में यह दावा किया गया है कि वह हर सुनवाई के लिए 10 लाख रुपये की फीस लेते हैं। हालांकि, 2018 में एक आरटीआई के जवाब में महाराष्ट्र सरकार ने बताया था कि सीनियर काउंसल मुकुल रोहतगी राज्य सरकार की तरफ से जज बीएच लोया केस में फीस के तौर पर 1.21 करोड़ रुपये दिए गए। रोहतगी ने तब राज्य सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पैरवी की थी।
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