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चट्टानों की दरारों में ऐसे जमा होता है खरा-सोना! वैज्ञानिकों ने खोला 'सुनहरी नसों' का रहस्य

 चट्टानों की दरारों के बीच 'सुनहरी नस' (Gold Veins In Rock) यानी सोने को लेकर एक वैज्ञानिकों को बड़ी सफलता मिली है. लंबे समय से शोध कर रहे रिसर्चर्स ने बताया कि नैनोपार्टिकल्स के कारण ऐसा होता है. विस्तृत जानकारी के लिए पढ़ें पूरी खबर


सोने की खदानों (Gold Veins In Rock) के रहस्य को लेकर अक्सर मन में कई सवाल उठते हैं. आखिर ये सोना (Gold) कैसे जमता है? कई बार सोना ज्यादा कैसे बन जाता है? चट्टानों की दरारों के बीच 'सुनहरी नस' यानी सोने के फॉरमेशन को लेकर वैज्ञानिकों को बड़ी सफलता मिली है.

ऐसे बनता है सोना 

लंबे समय से शोध कर रहे रिसर्चर्स ने बताया कि नैनोपार्टिकल्स के कारण ऐसा होता है. इस शोध के अनुसार, सोने की हाई-ग्रेड नलियों में नैनोपार्टिकल क्लस्टर होते हैं. इसी कारण धरती (Earth) की अंदरूनी परतों में मौजूद दरारों में सोने की खदान बन जाती है और कई बार ये उम्मीद से ज्यादा बन जाती है. शोधकर्ताओं का मानना है कि हाइड्रोथर्मल तरल पदार्थों में पर्याप्त मात्रा में सोने का घुल कर मोटी हाई-ग्रेड नलियां बनाना असंभव है. 

मिल गई तस्वीर 

प्रसीडिंग्स ऑफ द नैशनल अकैडमी ऑफ साइंसेज में छपे इस शोध में बताया गया है कि इन सुनहरी नलियों में घुला हुआ सोना तरल के साथ मिले पार्टिकल्स (Colloidal) के रूप में है. मॉन्ट्रियाल की मैकग्रिल यूनिवर्सिटी में अर्थ साइंसेज के डॉक्टोरल कैंडिडेट डंकन मैकलीश ने कहा कि पहली बार ऐसी तस्वीर मिली है जो इन नलियों में नैनोपार्टिकल कोलॉइड मौजूद होने का प्रमाण है

क्यों बनी अनसुलझी पहेली 

अब ये सवाल जरूर उठता है कि आखिर ये सोना (Gold Veins In Quartz) कैसे बनता है? ये हाई-ग्रेड सोने की जमी हुई धाराएं चट्टानों की दरारों में होती हैं. इनमें सोने की मात्रा 10-30 पार्ट्स प्रति अरब होते हैं. इन चट्टानों में सोने को नलियों में जमने में बहुत समय लगता है. वैज्ञानिकों के लिए इसे ठीक से समझ पाना अभी भी संभव नहीं हुआ है. लेकिन इस तात्कालिक शोध से कई रहस्य साफ हो गए हैं. 

नैनोपार्टिकल से बनती हैं सुनहरी नसें 

इस शोध के मुख्य शोधकर्ता मैकलीश और उनके साथियों ने इलेक्ट्रॉन बीम से ये तस्वीर बनाई. यह इमेज नैनोमीटर तक डिटेक्शन कर सकती है. इन तस्वीरों में सोने के 1-5 नैनोमीटर के पार्टिकल्स मिले जो 30-150 नैनोमीटर के क्लस्टर में थे. बड़ी सफलता की ओर बढ़ रही इस स्टडी को दुनिया की अलग-अलग खदानों में किया जाएगा ताकि अगर कहीं कोई और प्रक्रिया चल रही हो, तो वहां की स्थितियां स्पष्ट हो सके

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